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"प्रेमकथा-2 / शुभा" के अवतरणों में अंतर

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यहाँ प्रतिबद्धता का एक केन्र है
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एक ही ओर दौड़ी जाती हैं इच्छाएँ
 
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अपनी ही छुपी आग से दौड़ा जाता है
 
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दुख और ख़ुशियाँ सब दौड़ती हैं अपनी दरी लपेटे
 
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ज़मीन तोड़कर पानी बह जाता है एक ही इशा में
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ज़मीन तोड़कर पानी बह जाता है एक ही दिशा में
 
उसी दिशा में दौड़ते हैं होशो-हवास
 
उसी दिशा में दौड़ते हैं होशो-हवास
  

01:44, 26 जून 2009 के समय का अवतरण

यहाँ प्रतिबद्धता का एक केन्द्र है
आत्मा का उत्खनन होता है
एक ही ओर दौड़ी जाती हैं इच्छाएँ
आत्मा का कोयला सारा
अपनी ही छुपी आग से दौड़ा जाता है
दुख और ख़ुशियाँ सब दौड़ती हैं अपनी दरी लपेटे
ज़मीन तोड़कर पानी बह जाता है एक ही दिशा में
उसी दिशा में दौड़ते हैं होशो-हवास

उस दिशा में खड़ा है एक विखंडन
उम्मीद की चादर में अपने को छिपाए।