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"अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का
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सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का।

00:53, 29 जून 2009 का अवतरण

अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का।

यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का।

बुलबुल ग़ज़ल सराई आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का।