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"बच्चों की नाव में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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चलें यात्रा पर | चलें यात्रा पर | ||
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बच्चों की जादू की नाव में | बच्चों की जादू की नाव में | ||
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नाव यह | नाव यह | ||
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बनाई है बच्चों ने | बनाई है बच्चों ने | ||
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भोली मुस्कानों से | भोली मुस्कानों से | ||
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चिड़ियों के पंखों से | चिड़ियों के पंखों से | ||
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सीपी से | सीपी से | ||
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लहरों की तानों से | लहरों की तानों से | ||
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रेती पर | रेती पर | ||
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बालू के घर बने | बालू के घर बने | ||
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टापू पर खेल रहे हैं बच्चे छांव में | टापू पर खेल रहे हैं बच्चे छांव में | ||
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बच्चों की डोंगी में | बच्चों की डोंगी में | ||
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परियां हैं | परियां हैं | ||
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सूरज है - चांद है | सूरज है - चांद है | ||
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हिरनों के छौने हैं | हिरनों के छौने हैं | ||
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जंगल है | जंगल है | ||
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शेरों की मांद है | शेरों की मांद है | ||
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नाचेंगे | नाचेंगे | ||
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मिलकर ये सारे ही | मिलकर ये सारे ही | ||
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पहुंचेगी डोंगी जब सपनों के गांव में | पहुंचेगी डोंगी जब सपनों के गांव में | ||
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वहां मिलेंगे हमको | वहां मिलेंगे हमको | ||
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लोग खड़े | लोग खड़े | ||
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इंद्रधनुष के पुल पर | इंद्रधनुष के पुल पर | ||
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नाव घाट लगते-ही | नाव घाट लगते-ही | ||
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हमें लगेगा जैसे | हमें लगेगा जैसे | ||
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आ पहुंचे अपने घर | आ पहुंचे अपने घर | ||
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वहीं | वहीं | ||
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ढ़ाई आखर के मेले हैं | ढ़ाई आखर के मेले हैं | ||
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हम-तुम खो जाएंगे उसी ठांव में। | हम-तुम खो जाएंगे उसी ठांव में। |
17:10, 12 सितम्बर 2006 का अवतरण
कवि: कुमार रवींद्र
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आओ
चलें यात्रा पर
बच्चों की जादू की नाव में
नाव यह
बनाई है बच्चों ने
भोली मुस्कानों से
चिड़ियों के पंखों से
सीपी से
लहरों की तानों से
रेती पर
बालू के घर बने
टापू पर खेल रहे हैं बच्चे छांव में
बच्चों की डोंगी में
परियां हैं
सूरज है - चांद है
हिरनों के छौने हैं
जंगल है
शेरों की मांद है
नाचेंगे
मिलकर ये सारे ही
पहुंचेगी डोंगी जब सपनों के गांव में
वहां मिलेंगे हमको
लोग खड़े
इंद्रधनुष के पुल पर
नाव घाट लगते-ही
हमें लगेगा जैसे
आ पहुंचे अपने घर
वहीं
ढ़ाई आखर के मेले हैं
हम-तुम खो जाएंगे उसी ठांव में।