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"मेरी तलाश में मिल जाए तू, तो तू ही नहीं / शाद अज़ीमाबादी" के अवतरणों में अंतर
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खु़दा के फ़ज़्ल से याँ जिस्म में लहू ही नहीं॥ | खु़दा के फ़ज़्ल से याँ जिस्म में लहू ही नहीं॥ | ||
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15:18, 2 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
मेरी तलाश में मिल जाए तू, तो तू ही नहीं।
इस अम्रेख़ास में कुछ जाए, गुफ़्तगू ही नहीं॥
नियाज़मंद को लाज़िम है चश्मतर रखना।
अदा नमाज़ न होगी अगर वज़ू ही नहीं॥
वोह दामन अपना उठाए हुए हैं क्यों दमे-क़त्ल?
खु़दा के फ़ज़्ल से याँ जिस्म में लहू ही नहीं॥