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"निरख सखी ये खंजन आए / मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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19:35, 2 जुलाई 2009 का अवतरण

निरख सखी ये खंजन आए

फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए

फैला उनके तन का आतप मन से सर सरसाए

घूमे वे इस ओर वहाँ ये हंस यहाँ उड़ छाए

करके ध्यान आज इस जन का निश्चय वे मुसकाए

फूल उठे हैं कमल अधर से यह बन्धूक सुहाए

स्वागत स्वागत शरद भाग्य से मैंने दर्शन पाए

नभ ने मोती वारे लो ये अश्रु अर्घ्य भर लाए।