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"प्रतिशोध / मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त
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किसी जन ने किसी से क्लेश पाया
 
किसी जन ने किसी से क्लेश पाया
 
 
नबी के पास वह अभियोग लाया।
 
नबी के पास वह अभियोग लाया।
 
 
मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं।
 
मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं।
 
 
नही निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं।
 
नही निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं।
 
 
उन्होंने शांत कर उसको कहा यों
 
उन्होंने शांत कर उसको कहा यों
 
 
स्वजन मेरे न आतुर हो अहा यों।
 
स्वजन मेरे न आतुर हो अहा यों।
 
 
चले भी तो कहाँ तुम वैर लेने
 
चले भी तो कहाँ तुम वैर लेने
 
 
स्वयं भी घात पाकर घात देने
 
स्वयं भी घात पाकर घात देने
 
 
क्षमा कर दो उसे मैं तो कहूँगा
 
क्षमा कर दो उसे मैं तो कहूँगा
 
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तुम्हारे शील का साक्षी रहूंगा
तुम्हारे शील का साक्षी रहूँगा
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दिखावो बंधु क्रम-विक्रम नया तुम
 
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दिखावो बंधु क्रम विक्रम नया तुम
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यहाँ देकर वहाँ पाओ दया तुम।
 
यहाँ देकर वहाँ पाओ दया तुम।
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19:47, 2 जुलाई 2009 का अवतरण

किसी जन ने किसी से क्लेश पाया
नबी के पास वह अभियोग लाया।
मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं।
नही निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं।
उन्होंने शांत कर उसको कहा यों
स्वजन मेरे न आतुर हो अहा यों।
चले भी तो कहाँ तुम वैर लेने
स्वयं भी घात पाकर घात देने
क्षमा कर दो उसे मैं तो कहूँगा
तुम्हारे शील का साक्षी रहूंगा
दिखावो बंधु क्रम-विक्रम नया तुम
यहाँ देकर वहाँ पाओ दया तुम।