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"कुछ और अशआर / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर

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16:10, 6 जुलाई 2009 का अवतरण

तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त। ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥

आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़। जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥

रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़। फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥