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"दो मक़्ते / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर
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13:09, 8 जुलाई 2009 का अवतरण
मौजों की सयासत से मायूस न हो ‘फ़ानी’।
गरदाब की हर तह में साहिल नज़र आता है॥
चौंक पड़ते हैं ज़िक्रे ‘फ़ानी’ से।
नींद उचटती है इस कहानी से॥