भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो मक़्ते / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मौजों की सयासत से मायूस न हो ‘फ़ानी’। गरदाब की हर तह में साहिल नज...)
(कोई अंतर नहीं)

13:09, 8 जुलाई 2009 का अवतरण


मौजों की सयासत से मायूस न हो ‘फ़ानी’।

गरदाब की हर तह में साहिल नज़र आता है॥


चौंक पड़ते हैं ज़िक्रे ‘फ़ानी’ से।

नींद उचटती है इस कहानी से॥