भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भरिबो है समुद्र को शंबुक मे / शंकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकर }} <poem> भरिबो है समुद्र को शँबुक मे छिति को छँ...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
  
 
<poem>
 
<poem>
भरिबो है समुद्र को शँबुक मे छिति को छँगुनी पै धारिबो है ।
+
भरिबो है समुद्र को शम्बुक मे छिति को छंगुनी पै धारिबो है ।
बँधिबो है मृनाल सो मत्तकरी जुही फूल सोँ शैल बिदारिबो है ।
+
बंधिबो है मृनाल सो मत्तकरी जुही फूल सोँ शैल बिदारिबो है ।
गनिबो है सितारन को कवि शँकर रज्जु सोँ तेल निकारिबो है ।
+
गनिबो है सितारन को कवि शंकर रज्जु सोँ तेल निकारिबो है ।
 
कविता समुझाइबो मूढ़न को सविता गहि भूमि पे डारिबो है ।
 
कविता समुझाइबो मूढ़न को सविता गहि भूमि पे डारिबो है ।
  

23:50, 10 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

भरिबो है समुद्र को शम्बुक मे छिति को छंगुनी पै धारिबो है ।
बंधिबो है मृनाल सो मत्तकरी जुही फूल सोँ शैल बिदारिबो है ।
गनिबो है सितारन को कवि शंकर रज्जु सोँ तेल निकारिबो है ।
कविता समुझाइबो मूढ़न को सविता गहि भूमि पे डारिबो है ।


शंकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।