भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

745 bytes removed, 18:40, 10 जुलाई 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''समाजवाद बबुआ, धीरेसुबह-धीरे आई सवेरे आती चिड़िया <br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[गोरख पाण्डेयश्याम सुन्दर अग्रवाल]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
समाजवाद बबुआसुबह-सवेरे आती चिड़िया,आकर मुझे जगाती चिड़िया ।ऊपर बैठ मुंडेर पर,चीं-चीं, धीरेचूँ-धीरे आई चूँ गाती चिड़िया ।
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई जाना है, नहीं स्कूल उसे न ही दफ़्तर जाती चिड़िया ।फिर भी सदा समय से आती,आलस नहीं दिखाती चिड़िया ।
हाथी से आई थोड़ा सा चुग्गा लेकर भी,दिन भर पंख फैलाती चिड़िया ।इससे सेहत ठीक है रखती ,नहीं दवाई खाती चिड़िया ।
घोड़ा से आई  अँगरेजी बाजा बजाईछोटी-सी है फिर भी बच्चो, समाजवाद... बातें कई सिखाती चिड़िया ।नोटवा से आई  बोटवा से आई  बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...  गाँधी से आई  आँधी से आई  टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...  काँगरेस से आई  जनता से आई  झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...  डालर से आई  रूबल से आई  देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...  वादा से आई  लबादा से आई  जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...  लाठी से आई  गोली से आई  लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...  महंगी ले आई  गरीबी ले आई  केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...  छोटका रखो सदा ध्यान समय का छोटहन  बड़का का बड़हन  बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...  परसों ले आई  बरसों ले आई  हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...  धीरे-धीरे आई  चुपे-चुपे आई  अँखियन पर परदा लगाई  समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।  '''(रचनाकाल :1978)सबको पाठ पढ़ाती चिड़िया
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,730
edits