भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'> | <div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'> | ||
<!----BOX CONTENT STARTS------> | <!----BOX CONTENT STARTS------> | ||
− | '''शीर्षक: ''' | + | '''शीर्षक: '''ढीठ चाँदनी <br> |
− | '''रचनाकार:''' [[ | + | '''रचनाकार:''' [[धर्मवीर भारती]] |
<pre style="overflow:auto;height:21em;"> | <pre style="overflow:auto;height:21em;"> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | + | आज-कल तमाम रात | |
− | + | चाँदनी जगाती है | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | मुँह पर दे-दे छींटे | |
− | + | अधखुले झरोखे से | |
− | + | अन्दर आ जाती है | |
− | + | दबे पाँव धोखे से | |
− | + | माथा छू | |
− | + | निंदिया उचटाती है | |
− | + | बाहर ले जाती है | |
− | + | घंटो बतियाती है | |
+ | ठंडी-ठंडी छत पर | ||
+ | लिपट-लिपट जाती है | ||
+ | विह्वल मदमाती है | ||
+ | बावरिया बिना बात? | ||
+ | |||
+ | आजकल तमाम रात | ||
+ | चाँदनी जगाती है | ||
</pre> | </pre> | ||
<!----BOX CONTENT ENDS------> | <!----BOX CONTENT ENDS------> | ||
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div> | </div><div class='boxbottom'><div></div></div></div> |
23:44, 13 जुलाई 2009 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक: ढीठ चाँदनी
रचनाकार: धर्मवीर भारती
आज-कल तमाम रात चाँदनी जगाती है मुँह पर दे-दे छींटे अधखुले झरोखे से अन्दर आ जाती है दबे पाँव धोखे से माथा छू निंदिया उचटाती है बाहर ले जाती है घंटो बतियाती है ठंडी-ठंडी छत पर लिपट-लिपट जाती है विह्वल मदमाती है बावरिया बिना बात? आजकल तमाम रात चाँदनी जगाती है