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लड़कियों से / इला प्रसाद

20 bytes removed, 07:38, 14 जुलाई 2009
<poem>
मत रहो घर के अन्दर
 
सिर्फ़ इसलिए
 
कि सड़क पर खतरे बहुत हैं।
 
चारदीवारियाँ निश्चित करने लगें जब
 
तुम्हारे व्यक्तित्व की परिभाषाएँ
 
तो डरो।
 
खो जायेगी तुम्हारी पहचान
 
अँधेरे में,
 
तुम्हारी क्षमताओं का विस्तार बाधित होगा
 
डरो।
सड़क पर आने से मत डरो
 
मत डरो कि वहाँ
 
कोई छत नहीं है सिर पर।
तुमने क्या महसूसा नहीं अब तक
 
कि अपराध और अँधेरे का गणित
 
एक होता है?
 
और अँधेरा घर के अन्दर भी
 
कुछ कम नहीं है।
डरना ही है तो अँधेरे से डरो
 
घर के अन्दर रहकर,
 
घर का अँधेरा,
 
बनने से डरो।
</poem>
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