भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पढ़के दो कलमे अगर कोई मुसलमाँ हो जाय / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: पढ़के दो कलमे अगर कोई मुसलमाँ हो जाय। फिर तो हैवान भी दो रोज़ में ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:59, 15 जुलाई 2009 का अवतरण
पढ़के दो कलमे अगर कोई मुसलमाँ हो जाय।
फिर तो हैवान भी दो रोज़ में इन्साँ हो जाय॥
आग में हो जिसे जलना तो वो हिन्दु बन जाय।
ख़ाक में ही जिसे मिलना वो मुसलमाँ हो जाय॥
नशये-हुस्न को इस तरह उतरते देखा।
ऐब पर अपने कोई जैसे पशेमाँ हो जाय॥