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"चंद रुबाइयात / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर
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हर ज़र्रेपै फ़ज़ले-किब्रिया<ref>ईश्वरीय कृपा</ref> होता है। | हर ज़र्रेपै फ़ज़ले-किब्रिया<ref>ईश्वरीय कृपा</ref> होता है। | ||
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असनाम दबी ज़बाँ से यह कहते हैं-- | असनाम दबी ज़बाँ से यह कहते हैं-- | ||
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"वो चाहे तो पत्थर भी खु़दा होता है॥ | "वो चाहे तो पत्थर भी खु़दा होता है॥ | ||
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हर गाम पै चकरा के गिरा जाता हूँ। | हर गाम पै चकरा के गिरा जाता हूँ। | ||
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नक़्शे-कफ़े-पा बनके मिटा जाता हूँ॥ | नक़्शे-कफ़े-पा बनके मिटा जाता हूँ॥ | ||
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तू भी तो सम्भाल मेरे देनेवाले! | तू भी तो सम्भाल मेरे देनेवाले! | ||
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मैं बारे-अमानत में दबा जाता हूँ॥ | मैं बारे-अमानत में दबा जाता हूँ॥ | ||
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इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है। | इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है। | ||
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आवाज़-शिकस्ता दिल में इक राग भी है॥ | आवाज़-शिकस्ता दिल में इक राग भी है॥ | ||
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बेकार नहीं बना है, इक तिनका भी। | बेकार नहीं बना है, इक तिनका भी। | ||
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18:12, 19 जुलाई 2009 का अवतरण
हर ज़र्रेपै फ़ज़ले-किब्रिया<ref>ईश्वरीय कृपा</ref> होता है।
इक चश्मे-ज़दन में<ref>पलक मारते</ref> क्या से क्या होता है॥
असनाम दबी ज़बाँ से यह कहते हैं--
"वो चाहे तो पत्थर भी खु़दा होता है॥
हर गाम पै चकरा के गिरा जाता हूँ।
नक़्शे-कफ़े-पा बनके मिटा जाता हूँ॥
तू भी तो सम्भाल मेरे देनेवाले!
मैं बारे-अमानत में दबा जाता हूँ॥
इस जिस्म की केचुली में इक नाग भी है।
आवाज़-शिकस्ता दिल में इक राग भी है॥
बेकार नहीं बना है, इक तिनका भी।
ख़ामोश दियासलाई में इक आग भी है॥
शब्दार्थ
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