भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

4,641 bytes added, 05:42, 20 जुलाई 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''ढीठ चाँदनी सूत्रधार <br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[धर्मवीर भारतीविमल कुमार]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
मैं इन दिनों खेले जा रहे
एक अजीबोग़रीब नाटक का सूत्रधार हूँ
अभी नेपथ्य से ही बोल रहा हूँ
कि लोकतन्त्र में किसी बात पर बहस हो सकती है
इस बात पर भी बहस हो सकती है
कि हत्या करना कितना ज़रूरी है एक आदमी की
मानवता की रक्षा के लिए
कि बलात्कार से महिलाएँ कितनी जागरूक होती हैं
अपने अधिकारों के प्रति
आज-कल तमाम रातइस नाटक के हर सीन के बादचाँदनी जगाती एक संवाददाता सम्मेलन होगा, जो क्षेपक है,उसमें बताया जाएगाकि इन बहसों के नतीजे क्या निकले हैंकि आख़िर में कौन सा संकल्प पारित हुआ हैअगले दिन फिर अख़बारों में उनकी ख़बर होगीमुखपृष्ठ परटी०वी० पर फिर चेहरा नज़र आएगा उनकाचारों तरफ़ कैमरों से घिरी होगी उनकी कायाफिर एक विधेयक पेश होगा संशोधन के साथएक प्राहिकरण बनेगाऔर कुछ नहीं हुआ तो कम से कम अध्यक्ष का चयन ज़रूर होगा
मुँह पर दे-दे छींटेमैं इस लम्बे और उबाऊ नाटक का सूत्रधार हूँअधखुले झरोखे लचर कथानक और ढीले सम्वादों सेबोर हो चुका हूँअन्दर आ जाती लेकिन क्या करूँ अब मंच पर आकर बोल रहा हूँकि लोकतन्त्र में कोई भी जनप्रतिनिधी कह सकता हैदबे पाँव धोखे कि भूखी जनता को पहले अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय देना चाहिएकि नंगी जनता को समझना चाहिएकि बम ज़्यादा ज़रूरी है अंग ढँकने सेकि बच्चों को भी जान लेना चाहिएयुध से ही उनका भविष्य संवर सकता हैकि औरतों को भी मान लेना चाहिएकि सौन्दर्य में ही छिपी हुई है उनकी आज़ादीमध्यांतर में इस बात पर विशेष चर्चा होगीकि आज़ाई के पचास साल बादलुटेरे ही एश का निर्माण कर सकेंगेक्योंकि उनमें अद्भुत्त नेतृत्त्व-क्षमता हैकि मक्कार ही ईमानदारी की भाशःआ सिखाएंगेक्योंकि विकास के लिए धूर्तता बहुत ज़रूरी हैकि अहंकारी ही ज्ञान का प्रचार करेंगेक्योंकि विनम्रता में तो छिपी होती है मूर्खता
माथा छूमैं इस नाटक का सूत्रधार हूँनिंदिया उचटाती पर निर्देर्शक का दबाव भी मेरे ऊपर बहुत हैबाहर ले जाती लेकिन मुझे तो सच कहना हैलेखक के अनुसारघंटो बतियाती हैइसलिए सच कह रहा हूँठंडी-ठंडी छत कि नाटक के ख़त्म होने परलिपट-लिपट जाती हैहर कलाकार का उससे परिचय कराया जाऐगाविह्वल मदमाती हैयह बताया जाऐगाकि जो व्यक्ति कभी मंच पर आया ही नहींवही मुख्य नायक था इस नाटक काकि जो शोर सुनाई दे रहा था आपको अभी तकवह दरअसल नाटक का संगीत थाकि सभागार में जो अंधेरा छाया थाबावरिया बिना बात?वह लाइटिंग के ही कमाल का नतीजा था
आजकल तमाम रातदर्शको! इस नाटक के अभी और शो होंगेचाँदनी जगाती यह नाटक अगली सदी में भीइसी तरह हर शहर में खेला जाऐगा नाट्य-समीक्षको!अगर भारतीय रंगमंच को बचाना हैतो कुछ न कुछ आप लोगों को भी करना होगाइस समय नाट्य लेखन,अभिनयप्रस्तुतिसब ख़तरे में है
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,730
edits