भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चन्द शेर / आसी ग़ाज़ीपुरी

28 bytes removed, 08:38, 20 जुलाई 2009
कमी न जोशे-जुनूँ में, न पाँव में ताकत।
 
कोई नहीं जो उठा लाए घर में सहरा को॥
ऐ पीरेमुग़ाँ! ख़ून की बू साग़रे-मय में।
 
तोड़ा जिसे साक़ी ने, वो पैमानये-दिल था॥
कुछ हमीं समझेंगे या तोज़ेरोज़े-क़यामतवाले। 
जिस तरह कटती है उम्मीदे-मुलाक़ात की रात॥
गु़बार होके भी ‘आसी’ फिरोगे आवारा।
जुनूँने-इश्क़ से मुमकिन नहीं है छुटकारा॥
गुनूँमे-इश्क़ से मुमकिन नहीं है छुटकारा॥
     हम -से बेकल -से वादये-फ़रदा? 
बात करते हो तुम क़यामत की॥
साथ छोड़ा सफ़रे-मुल्केअदम में सब ने।
 लिपटी जाती है मगर हसरेहसरते-दीदार हनूज॥
हवा के रुख़ तो ज़रा आके बैठ जा ऐ क़ैस।
नसीबे-सुबह ने छेड़ा है ज़ुल्फ़े-लैला को॥
नसीबे-सुबहने छेड़ा है ज़ुल्फ़े-लैला को॥
 
 
बस तुम्हारी त्रज से जो कुछ हो।
बस तुम्हारी तरफ़ से जो कुछ हो।
मेरी सई और मेरी हिम्मत क्या॥
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
</Poem>