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कमी न जोशे-जुनूँ में, न पाँव में ताकत।
कोई नहीं जो उठा लाए घर में सहरा को॥
ऐ पीरेमुग़ाँ! ख़ून की बू साग़रे-मय में।
तोड़ा जिसे साक़ी ने, वो पैमानये-दिल था॥
कुछ हमीं समझेंगे या तोज़ेरोज़े-क़यामतवाले।
जिस तरह कटती है उम्मीदे-मुलाक़ात की रात॥
गु़बार होके भी ‘आसी’ फिरोगे आवारा।
जुनूँने-इश्क़ से मुमकिन नहीं है छुटकारा॥
हम -से बेकल -से वादये-फ़रदा?
बात करते हो तुम क़यामत की॥
साथ छोड़ा सफ़रे-मुल्केअदम में सब ने।
लिपटी जाती है मगर हसरेहसरते-दीदार हनूज॥
हवा के रुख़ तो ज़रा आके बैठ जा ऐ क़ैस।
नसीबे-सुबह ने छेड़ा है ज़ुल्फ़े-लैला को॥
बस तुम्हारी तरफ़ से जो कुछ हो।
मेरी सई और मेरी हिम्मत क्या॥