भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम से जाओ न बचाकर आँखें / अंजना संधीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <Poem> हम से जाओ न बचाकर आँखे...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार= अंजना संधीर |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} |
23:45, 24 जुलाई 2009 का अवतरण
हम से जाओ न बचाकर आँखें
यूँ गिराओ न उठाकर आँखें
ख़ामोशॊ दूर तलक फ़ैली है
बोलिए कुछ तो उठाकर आँखॆं
अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं
चैन से हैं उन्हें पाकर आँखॆं
मुझको जीने का सलीका आया
ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें।