भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम से जाओ न बचाकर आँखें / अंजना संधीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <Poem> हम से जाओ न बचाकर आँखे...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
+
|रचनाकार= अंजना संधीर
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}

23:45, 24 जुलाई 2009 का अवतरण


हम से जाओ न बचाकर आँखें
यूँ गिराओ न उठाकर आँखें

ख़ामोशॊ दूर तलक फ़ैली है
बोलिए कुछ तो उठाकर आँखॆं

अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं
चैन से हैं उन्हें पाकर आँखॆं

मुझको जीने का सलीका आया
ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें।