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"तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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मगर कुछ अपने भी प्यार के गम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं | मगर कुछ अपने भी प्यार के गम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं |
20:35, 28 जुलाई 2009 का अवतरण
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैंमगर कुछ अपने भी प्यार के गम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
कभी तो पहुँचेगी तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफा जवानी
हसीन रंगों का हम वो मौसम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
कहाँ है कागज़ में रंगों-बू वह कलम की जादूगरी तुम्हारी!
गुलाब! तुमने कहा था हरदम, 'छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं'