भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चंदा की छांव पड़ी / किशोर काबरा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
  
चन्दा की छांव पड़ी सागर के मन में,
+
चंदा की छांव पड़ी सागर के मन में,
  
 
शायद मुख देखा है तुमने दर्पण में।
 
शायद मुख देखा है तुमने दर्पण में।

02:34, 17 सितम्बर 2006 का अवतरण

कवि: किशोर काबरा

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

चंदा की छांव पड़ी सागर के मन में,

शायद मुख देखा है तुमने दर्पण में।


ओठों के ओर-छोर टेसू का पहरा,

ऊषा के चेहरे का रंग हुआ गहरा।


चुम्बन से डोल रहे माधव मधुबन में,

शायद मुख चूमा है तुमने बचपन में।


अंगड़ाई लील गई आंखों के तारे,

अंगिया के बन्ध खुले बगिया के द्वारे।


मौसम बौराया है मन में, उपवन में,

शायद मद घोला है तुमने चितवन में।


प्राणों के पोखर में सपनों के साये,

सपनों में अपने भी हो गए पराये।


पीड़ा की फांस उगी सांसों के वन में,

शायद छल बोया है तुमने धड़कन में।