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"सच बयानी जो अपनी आदत है / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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23:42, 30 जुलाई 2009 का अवतरण

सच बयानी की जो अपनी आदत है
उनके आईन में बग़ावत है।

आम जन हैं अगर हताश यहाँ
ये किसी ख़ास की शरारत है

ज़िन्दगी हर क़दम पे लगता है
तू किसी गैर की अमानत है

एड़ियों को कहाँ वे घिसते हैं
जिनका हर गाम पर ही स्वागत है

रंग लाएगी मौत भी उसकी
ज़िन्दगी जिसकी एक लानत एक लानत है

सो रहा तो लुटेगा रोएगा
प्रेम फल पाएगा जो जागत है