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"छोड़ कर बरबाद सब को ख़ुद मज़ा ले जाएगा / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem> दिनभर राम भगत बन जपते रहते मालाधारी सांझ ढले ही बन जाते हैं पूर...)
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23:53, 30 जुलाई 2009 का अवतरण

दिनभर राम भगत बन जपते रहते मालाधारी
सांझ ढले ही बन जाते हैं पूरे असल शिकारी

दिन के उजालों में तो अंधे होकर बैठे से रहते हैं
अंधियारे में मारोमारी कैसे मायाधारी उल्लू

पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब उख़ड़ा समझो अब उजड़ा
बैठ गए हैं समझ ठिकाना गुलशन डारी डारी उल्लू

पहले लूट मचाकर खुद ही खूब तबाही कर डाली फिर
जांच कमीशन के बनकर खुद आए हैं प्रभारी उल्लू

जन्म मरण के बंधन से वह मुक्ति पथ पर हो सकत था
माया ने जब जाल बिछाया प्रेम बना संसारी उल्लू