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"जो ख़त लिखे हुए थे, किताबों में रह गए / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर

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09:42, 1 अगस्त 2009 का अवतरण

जो ख़त लिखे हुए थे किताबों में रह गए आँखों में जितने ख़्वाब थे आँखों में रह गए

ऐसी हवा चली कि बुझाती गई चराग़ यानी उजाले क़ैद चराग़ों में रह गए

गु्मनाम हो गए कई चेहरे जो आम थे जो चेहरे आफ़्त्ताब थे यादों में रह गए

फ़स्ले-ख़िज़ाँ ने तोड़ लीं कलियाँ उमीद की खिलने से अबके फूल बहारों में रह गए

सुलझा रही थी ज़िन्दगी उलझे हुए सवाल आई क़ज़ा सवाल क़तारों में रह गए