भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Amitsahuccci (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बशीर बद्र <poem> कोई लश्कर है की बढ़ते हुए गम आते ...) |
Amitsahuccci (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
कोई लश्कर है की बढ़ते हुए गम आते है | कोई लश्कर है की बढ़ते हुए गम आते है | ||
शाम के साए बहुत तेज कदम आते है | शाम के साए बहुत तेज कदम आते है |
18:38, 2 अगस्त 2009 का अवतरण
{{KKRachna |रचनाकार= बशीर बद्र
कोई लश्कर है की बढ़ते हुए गम आते है
शाम के साए बहुत तेज कदम आते है
दिल वो दरवेश है जो आँख उठता ही नहीं
इसके दरवाजे पे सौ अहले करम आते है
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चाँदी के कलम आते है
मैंने दो चार किताबें तो पढ़ी है लेकिन
शहर के तौर तरीके मुझे कम आते है
ख़ूबसूरत सा कोई हादसा आँखों में लिये
घर कि दहलीज पे डरते हुए हम आते है