भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तू हुस्न की नज़र को समझता है बेपनाह / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमाब अकबराबादी |संग्रह= }} Category:गज़ल <poem> तू हुस्न...)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:20, 3 अगस्त 2009 के समय का अवतरण


तू हुस्न की नज़र को समझता है बेपनाह।
अपनी निगाह को भी कभी आज़मा के देख॥

परदे तमाम उठा के न मायूसे-जलवा हो।
उठ और अपने दिल की भी चिलमन उठा के देख॥