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"तू हुस्न की नज़र को समझता है बेपनाह / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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22:20, 3 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
तू हुस्न की नज़र को समझता है बेपनाह।
अपनी निगाह को भी कभी आज़मा के देख॥
परदे तमाम उठा के न मायूसे-जलवा हो।
उठ और अपने दिल की भी चिलमन उठा के देख॥