भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब अजब एहसास की परवाज़ में हैं पर लगे / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे घर लगे होटल नुमाँ अर्धांग...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=प्रेम भारद्वाज
 +
|संग्रह= मौसम मौसम / प्रेम भारद्वाज
 +
}}
 +
[[Category:ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
 
अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे
 
अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे

07:07, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

अब अजब अहसास की परवाज़ में हैं पर लगे
घर लगे होटल नुमाँ अर्धांगिनी वेटर लगे

अब भुलावा नींद को देते हैं टीवी सीरियल
और दादी की कथा तो बेतुकी टरटर लगे

बाग कमरे में बने जो प्लास्टिक के फूल हों
फिक्र भंवरों का कहाँ क्या तितलियों का डर लगे।

चारागर की बेकसी से अब है डर लगने लगा
रोगियों के साथ ही उसका कहीं बिस्तर लगे

जब कभी लैला का आँचल सुर्ख परचम हो गया
जागरण के नाम पर मजनूं को है पत्थर लगे

राह बतियाती नहीं संवाद भी संभव नहीं
रहनुमाई में तुम्हारी भी सफर बदतर लगे

अब से घर चूने लगे तो कर यकीं बरसात में
रतजगे करना ही सारे गाँव को बेहतर लगे

विश्व में अलगाव की दीवार गर ये ढह सके
तो धरा महबूब सी और प्रेम सा अम्बर लगे