भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सच बयानी जो अपनी आदत है / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem> सच बयानी की जो अपनी आदत है उनके आईन में बग़ावत है। आम जन हैं अगर ...) |
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=प्रेम भारद्वाज | ||
+ | |संग्रह= मौसम मौसम / प्रेम भारद्वाज | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
सच बयानी की जो अपनी आदत है | सच बयानी की जो अपनी आदत है |
07:10, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
सच बयानी की जो अपनी आदत है
उनके आईन में बग़ावत है।
आम जन हैं अगर हताश यहाँ
ये किसी ख़ास की शरारत है
ज़िन्दगी हर क़दम पे लगता है
तू किसी गैर की अमानत है
एड़ियों को कहाँ वे घिसते हैं
जिनका हर गाम पर ही स्वागत है
रंग लाएगी मौत भी उसकी
ज़िन्दगी जिसकी एक लानत एक लानत है
सो रहा तो लुटेगा रोएगा
प्रेम फल पाएगा जो जागत है