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"अब सुबह से धूप गरमाने लगी / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
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आज सुबह से धूप गरमाने लगी | आज सुबह से धूप गरमाने लगी |
07:31, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
आज सुबह से धूप गरमाने लगी
पर्वतों की बर्फ पिघलाने लगी
बंद है गो द्वार कारागार का
पर झरोखों से हवा आने लगी
फिर मुरम्मत हो रही है छतरियाँ
बादरी आकाश पर छाने लगी
छिड़ गई चर्चा कहीं से भूख की
गाँव की चौपाल घबराने लगी
क्या करें हदबंदियों पर अब यकीं
बाड़ ही जब खेत को खाने लगी
इतना गहरा तो हुआ तल कूप का
लौट कर अपनी सदा आने लगी
कब तलक तेरा भरम पाले रहूँ
नींव से दिवार बतियाने लगी
जो दुहाई दे रहे थे प्रेम की
खौफ उनसे रूह अब खाने लगी