भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ | अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ | ||
ख़त्म होगी न ये बरसात, करीब आ जाओ | ख़त्म होगी न ये बरसात, करीब आ जाओ |
08:07, 6 अगस्त 2009 का अवतरण
अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ
ख़त्म होगी न ये बरसात, करीब आ जाओ
सो न जाए कोई, चुप, करवटें बदलता हुआ
आख़िरी प्यार की है रात, करीब आ जाओ
पास रहकर भी रहें दूर उम्र भर के लिए!
यह भी अच्छी है मुलाक़ात, करीब आ जाओ
दो दिलों बीच ज़रूरत ही किसी की क्या है!
तुमसे कहनी है कोई बात, करीब आ जाओ
फिर न लौटेंगे कभी बाग़ की डालों पे गुलाब
फिर न पाओगे ये सौगात, करीब आ जाओ