भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:38, 7 अगस्त 2009 का अवतरण
आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है!
प्यार यह हमसे छिपाना खूब है!
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना खूब है!
बेकहे आये, चले भी बेकहे
खूब था आना, ये जाना खूब है!
हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना खूब है!
भूल है अपना समझ लेना गुलाब
रंग उन आँखों में, माना, खूब है!