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"ज़िन्दगी गोया शिकस्त-ए-साज़ से कुछ कम नहीं / प्राण शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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जिन्दगी गोया शिकस्त-ए-साज से कम नहीं
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अपनी खामोशी मगर आवाज से कम नहीं
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अपनी ख़ामोशी मगर आवाज़ से कुछ कम नहीं
  
 
रात के जलते परों ने आग बरसाई बहुत
 
रात के जलते परों ने आग बरसाई बहुत
चांदनी भी इक तेरे अन्दाज से कुछ कम नहीं
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चांदनी भी इक तेरे अन्दाज़ से कुछ कम नहीं
  
खनखनाती हैं अजल की बेड़ियां हर आन में
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खनखनाती हैं अज़ल की बेड़ियां हर आन में
जो रहे हैं ये तेरे एजाज से कुछ कम नहीं
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जी रहे हैं ये तेरे एजाज़ से कुछ कम नहीं
  
 
रंग-ए-गुल लम्हात की धड़कन से बिछड़ा गीत है
 
रंग-ए-गुल लम्हात की धड़कन से बिछड़ा गीत है
 
सोज़ होना गीत का इक राज़ से कुछ कम नहीं
 
सोज़ होना गीत का इक राज़ से कुछ कम नहीं
  
साँस की बुझती चिताओं में है नक्श-ए-जिन्दगी
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साँस की बुझती चिताओं में है नक्श-ए-ज़िन्दगी
सांस का अंजाम भी आवाज से कुछ कम नहीं</poem>
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सांस का अंजाम भी आवाज़ से कुछ कम नहीं
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11:02, 9 अगस्त 2009 का अवतरण

  
ज़िन्दगी गोया शिकस्त-ए-साज़ से कुछ कम नहीं
अपनी ख़ामोशी मगर आवाज़ से कुछ कम नहीं

रात के जलते परों ने आग बरसाई बहुत
चांदनी भी इक तेरे अन्दाज़ से कुछ कम नहीं

खनखनाती हैं अज़ल की बेड़ियां हर आन में
जी रहे हैं ये तेरे एजाज़ से कुछ कम नहीं

रंग-ए-गुल लम्हात की धड़कन से बिछड़ा गीत है
सोज़ होना गीत का इक राज़ से कुछ कम नहीं

साँस की बुझती चिताओं में है नक्श-ए-ज़िन्दगी
सांस का अंजाम भी आवाज़ से कुछ कम नहीं