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"पत्तियाँ हो गईं हरी देखो / शीन काफ़ निज़ाम" के अवतरणों में अंतर
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07:17, 11 अगस्त 2009 का अवतरण
पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
फिर खिली क्या कोई कली देखो
शोर है क्यूँ गली-गली देखो
याद और याद को भूलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
मार<ref>साँप
</ref> कोई शिकार पर निकला
दश्त में रोशनी हुई देखो
रात की राख मुँह प' मल-मल कर
सुबह कितनी सँवर गई देखो
सुबह की फ़िक़्र बाद में करना
रात कितनी गुज़र गई देखो
ज़िंदगी किस तरह तुम्हारी "निज़ाम"
उलझनों से उलझ गई देखो
शब्दार्थ
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