"तेरी मेरी प्रीत निराली / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर
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तू चन्दा है नील गगन का | तू चन्दा है नील गगन का | ||
मैं पीतल की जलमय थाली! | मैं पीतल की जलमय थाली! | ||
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क्या तूने देखा धारा को | क्या तूने देखा धारा को | ||
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क्यों घबराती पिया मैं तन मन | क्यों घबराती पिया मैं तन मन | ||
तेरा जो तुझ पर ही खोते? | तेरा जो तुझ पर ही खोते? | ||
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तू नीलाभ गगन का स्पन्दन | तू नीलाभ गगन का स्पन्दन | ||
मैं धूलि हूँ पनघट वाली | मैं धूलि हूँ पनघट वाली | ||
तेरी मेरी प्रीत निराली! | तेरी मेरी प्रीत निराली! | ||
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हो रूप गुणों से आकर्षित यदि | हो रूप गुणों से आकर्षित यदि | ||
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तेल बिना क्या कभी वर्तिका | तेल बिना क्या कभी वर्तिका | ||
जग उजियारा है कर पाती? | जग उजियारा है कर पाती? | ||
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दिनकर! तेरे स्नेह स्पर्श बिन | दिनकर! तेरे स्नेह स्पर्श बिन | ||
नहीं कली ये खिलने वाली | नहीं कली ये खिलने वाली | ||
तेरी मेरी प्रीत निराली! | तेरी मेरी प्रीत निराली! | ||
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धरा संजोती जैसे अंकुर | धरा संजोती जैसे अंकुर | ||
− | मुझे | + | मुझे हथेली में तू रखता |
अपनी करुणा से तू ईश्वर | अपनी करुणा से तू ईश्वर | ||
मेरे सब संशय है हरता! | मेरे सब संशय है हरता! | ||
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जग अभिनन्दन करता जय का | जग अभिनन्दन करता जय का | ||
दोषों पर मेरे तू ढरता! | दोषों पर मेरे तू ढरता! | ||
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नहीं मुझे अवलम्बन खुद का | नहीं मुझे अवलम्बन खुद का | ||
तू ही भरता मेरी प्याली | तू ही भरता मेरी प्याली | ||
तेरी मेरी प्रीत निराली! | तेरी मेरी प्रीत निराली! | ||
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तू शंकर का तप कठोर | तू शंकर का तप कठोर | ||
मैं एक कुशा माँ सीता वाली | मैं एक कुशा माँ सीता वाली | ||
तेरी मेरी प्रीत निराली! | तेरी मेरी प्रीत निराली! | ||
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१० दिसम्बर ०८ | १० दिसम्बर ०८ | ||
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06:54, 12 अगस्त 2009 का अवतरण
तेरी मेरी प्रीत निराली
तू चन्दा है नील गगन का
मैं पीतल की जलमय थाली!
क्या तूने देखा धारा को
सीपी मुक्ता माल पिरोते?
क्या तूने देखा बंसी को
छिद्रयुक्त हो सुर संजोते?
क्या मलयज भी सकुचाती है
धवल गिरि के सम्मुख होते?
क्यों घबराती पिया मैं तन मन
तेरा जो तुझ पर ही खोते?
तू नीलाभ गगन का स्पन्दन
मैं धूलि हूँ पनघट वाली
तेरी मेरी प्रीत निराली!
हो रूप गुणों से आकर्षित यदि
तेरी चेतना मुझ तक आती
कैसे फिर मेरे शून्यों को
अपने होने से भर पाती!
डोर प्रीत की तेरी प्रियतम
खण्ड मेरे है बाँधे जाती!
तेल बिना क्या कभी वर्तिका
जग उजियारा है कर पाती?
दिनकर! तेरे स्नेह स्पर्श बिन
नहीं कली ये खिलने वाली
तेरी मेरी प्रीत निराली!
धरा संजोती जैसे अंकुर
मुझे हथेली में तू रखता
अपनी करुणा से तू ईश्वर
मेरे सब संशय है हरता!
प्राण मेरे! बन प्राण सुधा तू
पल-पल प्राणों में है झरता!
जग अभिनन्दन करता जय का
दोषों पर मेरे तू ढरता!
नहीं मुझे अवलम्बन खुद का
तू ही भरता मेरी प्याली
तेरी मेरी प्रीत निराली!
तू शंकर का तप कठोर
मैं एक कुशा माँ सीता वाली
तेरी मेरी प्रीत निराली!
१० दिसम्बर ०८