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"प्रकृति जितना देती है / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर

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निश्छलता कितनी प्रकॄति में
 
निश्छलता कितनी प्रकॄति में
 
रंग दूर के घुल-मिल जाते!
 
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सुघड़ पेड़ के पास खड़े
 
सुघड़ पेड़ के पास खड़े
 
मुँह बाये, तकते नहीं अघाते
 
मुँह बाये, तकते नहीं अघाते
 
कितने सुकुमार ललायित अंकुर
 
कितने सुकुमार ललायित अंकुर
बूँद सनेह की पा  सिंच जाते!
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बूँद स्नेह की पा  सिंच जाते!
 
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और कभी संध्या प्रभात मिल
 
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सूरज दादा देर गये तक
 
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रिरियाते छुट्टी ना पाते!
 
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कभी पवन का बैग खोलते
 
कभी पवन का बैग खोलते
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काश! प्रकृति जितना देती है
 
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अंश मात्र उसको लौटाते!
 
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१३ नवम्बर ०८
 
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06:59, 12 अगस्त 2009 का अवतरण

जहाँ हँसे हैं लाल फूल, वहाँ
नीले भी अक्सर खिल जाते
निश्छलता कितनी प्रकॄति में
रंग दूर के घुल-मिल जाते!

सुघड़ पेड़ के पास खड़े
मुँह बाये, तकते नहीं अघाते
कितने सुकुमार ललायित अंकुर
बूँद स्नेह की पा सिंच जाते!

और कभी संध्या प्रभात मिल
दोनों जब खुल के गपियाते
सूरज दादा देर गये तक
रिरियाते छुट्टी ना पाते!

कभी पवन का बैग खोलते
कभी बरखा की बूंदों के खाते,
काश! प्रकृति जितना देती है
अंश मात्र उसको लौटाते!

१३ नवम्बर ०८