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"दफ़्न जब ख़ाक़ में हम सोख़्ता-सामाँ होंगे / मोमिन" के अवतरणों में अंतर

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नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे|
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दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता-सामाँ  होंगे
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे|
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फ़ल्स-ए-माही के गुल शम्अ-ए-शबिस्ताँ होंगे
  
ताब-ए-नज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ,
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नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे|
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नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे  
  
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
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ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ,
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे|
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और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे
  
फिर बहार आई वही दश्त-ए-नावर्दी होगी,
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करके ज़ख़्मी मुझे नादिम हों ये मुमकिन ही नहीं
फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे|
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गर वो होंगे भी तो बेवक़्त परेशाँ होंगे
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तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
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हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे  
  
 
नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम,  
 
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लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे|
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एक हम हैं के हुए ऐसे पशेमान के बस,  
 
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हम निकालेंगे सुन ऐ मौजे-हवा बल तेरा
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उसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे
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मन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठायेंगे कभी,
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ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे
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दाग़े-दिल निकलेंगे तुर्बत पे मेरी यूँ लाला
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ये वो अख़गर नहीं जो ख़ाक में पिन्हाँ होंगे
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चाक-ए-पर्दा से ये ग़म्ज़े हैं तो ऐ पर्दानशीं
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एक मैं क्या कि सभी चाक-गरेबाँ होंगे
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फिर बहार आई वही दश्त-ए-नवर्दी होगी,
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फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे
  
मिन्नत--हज़रत-ए-ईसा न उठायेंगे कभी,
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संग और हाथ वही , वही सर--दाग़े-जुनूँ
ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा--एहसाँ होंगे|
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वही हम होंगे वही दश्त--बयाबाँ होंगे
  
 
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",  
 
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",  
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे|
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आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसल्माँ होंगे
  
 
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21:28, 13 अगस्त 2009 का अवतरण

दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता-सामाँ होंगे
फ़ल्स-ए-माही के गुल शम्अ-ए-शबिस्ताँ होंगे

नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे

ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ,
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे

करके ज़ख़्मी मुझे नादिम हों ये मुमकिन ही नहीं
गर वो होंगे भी तो बेवक़्त परेशाँ होंगे

तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे

नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम,
लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे

एक हम हैं के हुए ऐसे पशेमान के बस,
एक वो हैं के जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे

हम निकालेंगे सुन ऐ मौजे-हवा बल तेरा
उसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे

मन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठायेंगे कभी,
ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे

दाग़े-दिल निकलेंगे तुर्बत पे मेरी यूँ लाला
ये वो अख़गर नहीं जो ख़ाक में पिन्हाँ होंगे

चाक-ए-पर्दा से ये ग़म्ज़े हैं तो ऐ पर्दानशीं
एक मैं क्या कि सभी चाक-गरेबाँ होंगे

फिर बहार आई वही दश्त-ए-नवर्दी होगी,
फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे

संग और हाथ वही , वही सर-ओ-दाग़े-जुनूँ
वही हम होंगे वही दश्त-ओ-बयाबाँ होंगे

उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसल्माँ होंगे