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"मौज / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

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सब अपनी-अपनी कहते हैं!
 
सब अपनी-अपनी कहते हैं!
कोई न किसी की सुनता है,
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नाहक कोई सिर धुनता है,
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::नाहक कोई सिर धुनता है,
दिल बहलाने को चल फिर कर,
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::दिल बहलाने को चल फिर कर,
 
फिर सब अपने में रहते हैं!
 
फिर सब अपने में रहते हैं!
सबके सिर पर है भार प्रचुर
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::सबके सिर पर है भार प्रचुर
सब का हारा बेचारा उर,
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::सब का हारा बेचारा उर,
सब ऊपर ही ऊपर हंसते,
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::सब ऊपर ही ऊपर हँसते,
 
भीतर दुर्भर दुख सहते हैं!
 
भीतर दुर्भर दुख सहते हैं!
ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
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::ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
सबके पथ में है शिला, शिला,
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::सबके पथ में है शिला, शिला,
ले जाती जिधर बहा धारा,
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::ले जाती जिधर बहा धारा,
 
सब उसी ओर चुप बहते हैं।
 
सब उसी ओर चुप बहते हैं।
 
 
 
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18:15, 14 अगस्त 2009 का अवतरण

सब अपनी-अपनी कहते हैं!
कोई न किसी की सुनता है,
नाहक कोई सिर धुनता है,
दिल बहलाने को चल फिर कर,
फिर सब अपने में रहते हैं!
सबके सिर पर है भार प्रचुर
सब का हारा बेचारा उर,
सब ऊपर ही ऊपर हँसते,
भीतर दुर्भर दुख सहते हैं!
ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
सबके पथ में है शिला, शिला,
ले जाती जिधर बहा धारा,
सब उसी ओर चुप बहते हैं।