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|रचनाकार=बहादुर शाह ज़फ़र
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
कीजे न दस में बैठ कर आपस की बातचीत
पहुँचेगी दस हज़ार जगह दस की बातचीत
कब तक रहें ख़मोश के ज़ाहिर से आप की
हम ने बहुत सुनी कस-ओ-नाकस की बातचीत
कीजे न दस में बैठ कर आपस की बात चीत <br>मुद्दत के बाद हज़रत-ए-नासेह करम किया पहुँचेगी दस हज़ार जगाह दस फ़र्माइये मिज़ाज-ए-मुक़द्दस की बात चीत <br><br>बातचीत
कब तक रहें ख़मोश पर तर्क-ए-इश्क़ के ज़ाहिर से आप की <br>लिये इज़हार कुछ न हो हम ने बहुत सुनी कस-ओ-नाकस मैं क्या करूँ नहीं ये मेरे बस की बात चीत <br><br>बातचीत
मुद्दत के बाद हज़रत-ए-नासेह करम किया <br>फ़र्माईये मिज़ाज-ए-मुक़द्दस की बात चीत <br><br> पर तर्क-ए-इश्क़ के लिये इज़हार कुछ न हो <br>मैं क्या करूँ नहीं ये मेरे बस की बात चीत <br><br> क्या याद् याद आ गया है "ज़फ़र" पन्जापंजा-ए-निगार <br>कुछ हो रही है बन्द-ओ-मुख़म्मस की बात चीतबातचीत</poem>
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