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"तुम वही दर्पण हो / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
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कविता में इसीलिए | कविता में इसीलिए |
13:05, 16 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
कभी देखता हूँ जैसा
वह लिखा
देखना चाहता हूँ जैसा
-वह भी कभी
दिखाना चाहते हैं कैसा
वे मुझको
वह भी लिखा
पर इस सबमें
कहीं नहीं मैं दिखा।
अब मैं कैसा दिखता हूँ
अपने को
वैसा लिखता हूँ
मेरे दिखने में दिखेगा
जो दिखता-देखता है मुझे
जिसमें मैं दिखता हूँ लेकिन
तुम वही दर्पण हो
इसलिए लिखना सभी मेरा
तुम्हें अर्पण हो
तुम्हारे ज़रिए जो भी दिखता है
मैं देख पाता हूँ
कविता में इसीलिए
कविता से देखी
दुनिया
बन जाता हूँ।