भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुलसीदास के दोहे / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (तुलसीदास के दोहे moved to तुलसीदास के दोहे / तुलसीदास) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।। | आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।। | ||
+ | |||
+ | |||
+ | आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह! | ||
+ | |||
+ | तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!! | ||
+ | |||
+ | |||
+ | तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर | ||
+ | |||
+ | बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर | ||
+ | |||
+ | |||
+ | बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय | ||
+ | |||
+ | आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय | ||
+ | |||
+ | |||
+ | तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक | ||
+ | |||
+ | साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक | ||
+ | |||
+ | |||
+ | काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान | ||
+ | |||
+ | तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान | ||
+ | |||
+ | |||
+ | राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार | ||
+ | |||
+ | तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार |
03:05, 7 फ़रवरी 2008 का अवतरण
लेखक: तुलसीदास
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।।
आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!!
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर
बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर
बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक
साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक
काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार