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तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर!
बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर !!
बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय !
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय!!
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या , विनय , विवेक!
साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक !!
काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान !
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान !!
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार!
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!!
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