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20:06, 17 अगस्त 2009 का अवतरण
आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे
आप क्यों चुप हैं ये हैरत है मुझे
शायरी मेरे लिए आसाँ नहीं
झूठ से वल्लाह नफ़रत है मुझे
रोज़े-रिन्दी है नसीबे-दीगराँ
शायरी की सिर्फ़ क़ूवत है मुझे
नग़मये-योरप से मैं वाक़िफ़ नहीं
देस ही की याद है बस गत मुझे
दे दिया मैंने बिलाशर्त उन को दिल
मिल रहेगी कुछ न कुछ क़ीमत मुझे
शब्दार्थ :
रोज़े-रिन्दी= शराब पीने का दिन; नसीबे-दीगराँ= दूसरों की क़िस्मत में