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"इतिहास की आशा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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विलाप करना पड़ता है प्रभु को
 
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अपने ही कोटि-कोटि शवों पर
 
अपने ही कोटि-कोटि शवों पर

16:02, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

युद्ध के बाद
पद्मिनी की जगह
मिलती है मुट्ठी भर राख
सिकन्दर को जाना पड़ता है खाली हाथ
विलाप करना पड़ता है प्रभु को
अपने ही कोटि-कोटि शवों पर
पापों के हिम में गलना पड़ता है
महासमर के अजेय योद्धाओं को

निराशा की कविता नहीं है यह
इतिहास की आशा है
आने वाले विजेताओं से।