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"आशीर्वादों के बावजूद / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
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इच्छाओं की गगनाकार बाल्टियों को
हव में लटका कर
मैं
भरता रहा उन्हें सदा
अनंत सम्भावनाओं भरे
अनगिनत शब्द स्रोतों से
ताकि आवश्यकता के समय
(कहीं भी ज्वाला फूट पढ़ने पर)
उन्हें प्रयुक्त कर सकूँ
सागर के ज्वार-भाटे की तरह
तट की सारी बलूसमेत
या भर सकूँ उन्हें
कारतूसों की जगह अपनी जेबों में
(धर्म क्षेत्र में उतरने के समय)
किंतु शब्द जो केवल मौकापरस्त निकले
अब इच्छाओं को महत्वकाँक्षी कह
हर मंत्र को तंत्र की तरह प्रयुक्त करके
केवल एक ही ज़िद पर अड़े है कि
जब तलक शिव के साथ
शव की अराधना नहीं होगी
वे किसी भी अनुष्ठान में
कल्याण को जीवित नहीं होने देंगे
पुरोहितों के सैंक़ड़ों
आशीर्वादों की बावजूद।