भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सन्नाटा / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज प...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:50, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
हमनें भाँपा है
सन्नाटा खींच लेता है रगों से ख़ून
कुन्द हो जाती है सोच की धार
लटक जाती है भुजाएँ बेहोश होकर
अनायास निकलने लगते हैं अस्फुट शब्द।
सन्नाटा एक रोज़ का हो तो इसे
शुगल का नाम दिया जा सकता है
या फिर
नींद के नाम किया जा सकता है
जब घुल जाता है पोर-पोर में
पारे की मानिन्द सन्नाटा।
तो चुस जाता है व्यक्तित्व
और लाले पड़ जाते हैं अस्तित्व के।