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"जागना है ख़तरनाक / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर

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02:59, 22 अगस्त 2009 का अवतरण

सोईये,
लम्बी तान कर सोईये
अभी जागना ग़ैर ज़रूरी है
सोना मजबूरी है
जागना है ख़तरनाक
जाने किसकी गृद्ध,दृष्टि तुम्हारी जागृति को सूँघ लेगी
कब चन्द गुर्गे दबोच लेंगे
किसी चौराहे पर तुम्हारा शव
शिनाख़्त के लिए रखा जाएगा।
इसीलिए कहती हूँ
सोते रहिए।
जागने पर बरसेंगे पत्थर,
जागने पर ही टूटेंगे कहर,
क्योंकि दुनियाँ नींद खरीदती है
जागृति सहती नहीं।
इसीलिए कहती हूँ
सोईये,खूब सोईये
जो मिले खाईये,फिर सोईये।
न मिले तो बोलिये मत।
चीखिये मत।
चुराईये, छीनिये,झपटिये
बेदखल कीजिए ।
ईमान बिछाइए झूठ ओढ़िये
सत्ता को भींच कर मुट्ठी में
मुद्दे उठाईये,
जोड़ तोड़ बिठाईय
जनता को उकसाईये
पढ़वाईये,गरवाईये
बात बने तो पिछले दरवाजे से
संसद में घुसिये
चप्पल लहराईये, मेज़ों को पीटिये
जैसे तैसे जीतिये
फिर पाँच साल की.........नींद लीजिए
लम्बी तानकर नींद लीजिए।

चीख़ना है शर्मनाक !
अखाबारों का मसाला है
आपकी चीख अफवाहों की खाला है
जान जाएँगे लोग
आप भूखे,रूखे हैं
चोर हैं,बटगार है
गर्दन तक भ्रष्टाचार है
इसलिए चुप रहिए
बोलिए मत,सोईये
यही ताकीद है
आप ही हैं सही आदमी
है आदमीयत की पहचान
आपकी साख,राष्ट्र की साख
आपके बोल,बने संविधान
बाकि तो ऐजैट हैं
छेदों वाले टैंट हैं
तस्करों के यार हैं
देशभक्त तो आप हैं
इसलिए जनता के लिए
आश्वासनों की ठण्डाई छानिये
स्टण्टों का भोग लगाईये
हँसाईये,रुलाईये,नचाईये
थक जाएँ तो सुलाईये
और खुद भी
लम्बी तान के सोईये