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"गुणनफल आँक दो हर आँख पर / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर

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03:18, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारी स्वार्थपरता ने
जब जब मुझे छीला है
तब तब मेरे मंगलसूत्र का
एक मोती चटका है
चटकते-चटकते,घटते घटते
अब डोर मात्र रह गया है
और
मेरे और तुम्हारे बीच का रिश्ता
महज़ ख़तों में सिमट गया है।
मेरे शब्द
जो सिर्फ तुम्हारे लिए थे
हज़ारों गलियों में टुकड़े-टुकड़े भटक रहे हैं।
जब कभी तेरी याद का फल
कोई सुग्गा कुतरता है
मेरे लफ्ज़ ज़ख़्मी हो जाते हैं
आशंकाओं की सुईयाँ चुभने लगतीं हैं
यकी की ख़ुश्बू उड़ जाती है
आश्वासन पिघल पिघल जाते हैं।
हथेलियों पर आँसुओं के ताज
बनते ढहते हैं।
ओ सूरज !
मेरे हर दर्द को
खुशियों से जरब कर दो
और
गुणनफल को आँक दो
हर आँख पर।