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"कशमकश..... / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

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अपने ही हाथों से
 
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इक बुत बनाती हूँ
 
इक बुत बनाती हूँ
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चलते-चलते
 
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ज़िन्दगी का
 
ज़िन्दगी का
अकस्मात
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ठहर जाना
 
ठहर जाना
 
और खेल का
 
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इतिश्री
 
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हो जाना ....</poem>
 
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11:12, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

इक अजीब सी
कश्मकश है
अपने ही हाथों से
इक बुत बनाती हूँ
लम्हें दर लम्हें
उसे सजाती हूँ ,
संवारती हूँ ,
तराशती हूँ
और फ़िर ....
तोड़ देती हूँ ...


बड़ा ही
अजीब पहलू है
कैनवस पर खिले
रंगीन चित्रों पर
अचानक
स्याह रंगों का
बिखर जाना....


चलते-चलते
ज़िन्दगी का
अकस्मात्
ठहर जाना
और खेल का
इतिश्री
हो जाना ....