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"नायक / केशव" के अवतरणों में अंतर

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(कोई अंतर नहीं)

15:24, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

इसमें कोई शक नहीं कि मेरे दोस्तों ने
भी ड्राईंग रूम में बैठे-बैठे छेड़ रखी
है गुम होती परिस्थितियों के खिलाफ
एक लड़ाई उनकी घोष्णाओं ने कर
लिया है भीषण रुख अख्तियार और
उनकी आवाज़ें रह-रहकर रेंगने लगी
हैं एक काँटेदार तार पर

लेकिन सड़क किनारे किसी भिख़ारी को देख
उनकी आँखों में घृणा के असंख्य कीड़े
कुलबुलाने लगते हैं जैसे अचानक उनके
बराबर से रिरियाता खुजली का मारा
कुत्ता गुजर गया हो

हजूम में आवाज़ें लगाते समय उनकी सूखी
आवाज़ जैसे खोखली नली से होकर आती है
अपनेवे जिम्मेदारियों का ख्याल जो ऐसे
वक्त में अचानक उन्हें दबोच लेता है
पागल कुत्ते की तरह और वे उसकी
गिरफ्त से छूटने के बजाय्अ गरदन
झुकाये गड़ने देते हैं उसके दाँत अपनी
आत्मा तक

मेरे दोस्त सचमुच ही बहुत समझदार
हैं जो वक्त की नज़ाकत पहचानकर
अपनी आवाज़ का वाल्यूम ऊँचा-नीचा करते हैं
सोने से पहले अपने अहं को दिमाग से
निकाल कर जैसे जेब से निकालते हैं रुमाल
रख देते हैं तकिये के नीचे तहाकर
क्योंकि सलवटों के प्रति वे बेहद
एलर्जिक हैं
वक्त के साथ-साथ चलने के लिये उनका
यह नुस्खा कितना गुणकारी सिद्ध होता हइ
आखिर ज़िन्दा रहने के लिये कोई न कोई
कारोबार भी तो ज़रूरई है