भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऊब गया हूँ / केशव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=अलगाव / केशव }} {{KKCatKavita}} <poem>यह सब जैसा है ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:44, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
यह सब जैसा है उसके वैसा होने से
ऊब गया हूँ मैं
उन्हीं चेहरों से मिलना रोज़
गुज़रना बाज़ार से
जहाँ से उठने वाली गंध
भर देती है मेरी आत्मा में
कोलाहल
चूहों की तरह झाँकते हुए
पीले मकानों वाली खिड़कियों से लोग
झुककर
सड़कों गलियों में से
घटनाएँ बीनते हुए
कुछ नहीं है उनके पास
शून्य में लटकी आँखों के
अतिरिक्त
जिसमें हर तस्वीर उतरती है
बिना परछाईं के
सच तो यह है कि मैं
हर रोज़
इन ठहरे हुए
प्राणहीन दृष्यों मे गुज़रने से
ऊब गया हूँ